अंग्रेज़ी की ऐसी हवा चली की सब अपनी भाषा भूल गए ,
औरों का नव वर्ष याद रहा ख़ुद का नव वर्ष भूल गए !
हर तरफ़ लोंग ऐसे नव वर्ष में आज खों गए ,
अपनी ही असभ्यता पर हम दीवाने हो गए !
अंग्रेज़ चले गए पर अंग्रेज़ी सभ्यता छोड़ गए ,
और हम ग़ुलामों की तरह उनकी सभ्यता अपना गए !
उनकी वेशभूषा उनकी बोली में हम यूँ खो गए ,
उन्होंने अपनाई साड़ी और हम ख़ुद नंघे हों गए !
आज हम ख़ुद की नज़रों में न जाने कितना गिर गए ,
फ़ैशन के आडंबर में हम अपने गाँव को ही भूल गए !
चलो छोड़ो फ़ैशन की दुनिया चलते हैं फिर उस गाँव की ओर ,
अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता अपने देश की मिट्टी की ओर !
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