Tuesday 22 December 2015

हाय रे क़िस्मत नारी की

रंग बदलते आदमी के चेहरे पर ,
बस भूख का ख़ुमार होता हैं !
हवस उठती हैं मन में ख़ुद के ,
और बदनाम लड़कियों को करता हैं !
क्या ख़ूब खेल हैं ये क़िस्मत का ,
बस औरतों पर ही ये ज़ुल्म हूवा !
हवस भरी निगाह दुनिया की ,
हर युग में नारी पर ही अत्याचार हूवा !
क्या राम क्या कृष्ण ,
क्या अकबर क्या झाँसी की रानी !
हर युग में देखो तो बस ,
नारी का इज़्ज़त तार तार हूवा !
अजब लोंग हैं इस दुनिया के ,
ख़ुद दर्द देकर ख़ुद दवा देने आते हैं !
थोड़ी सी ये रहेम दिखलाकर ,
हमको को हीं लूट जाते हैं !

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