Sunday 27 December 2015

हर देश अपना हर वतन अपना

काश हम भी पक्षी होते ,
सामने होता खुला आसमान !
उड़ता जाता मैं चाहे जहाँ ,
हर देश अपना हर वतन अपना होता !

न होता सीमा रेखा का बँधन ,
हर दिल में अपना एक आशियाना होता !
हर कोई अपना सा लगता ,
हर देश से अपना भाई चारा रहता !

न कोई अपना मज़हब होता ,
न कोई अपना दुश्मन !
जिस डाल पर चाहता बैठ जाता ,
हर डाल से अपना प्यारा नाता होता !

न कोई तेरा या मेरा का नारा होता ,
हर वतन से अपना प्यार होता !
जब चाहे जहाँ चलें जाता ,
हर वतन से अपना ख़ून का नाता होता !

आज इंसा हीं इंसा में भेद भाव बड़े ,
अपनो ने हीं अपनो पर हैं वार किए !
बस चंद पैसों के ख़ातिर इन ग़द्दारो ने ,
वतन वतन में हैं बँटवारे किए !

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