वो थी आगे आगे ,
मैं था उसके पीछे पीछे !
वो हुस्न की परी थीं ,
बड़ी हीं नाजों से पली थी !
कुछ दूर पीछा करते हीं ,
उसने मूड कर देखा !
देखकर उसको ऐसा लगा ,
जैसे मैंने खुदा को देखा !
दिल ने छेड़ा तराना ,
मौसम ने नग़मा गाया !
ली अंगड़ाई जब उसने ,
सूरज ने भी शीश झुकाया !
देख के उसकी ज़ालिम अदा ,
ये बादल भी घिर के आया !
बिन मौसम के आज इसने ,
पानी हैं बरसाया !
शाम सुहानी हुई तो ,
तेरा हुस्न और भी छाया !
मेरे दिलो दिमाग़ पर ,
हर पल हैं तेरा ही साया !
No comments:
Post a Comment