फिर भी न जाने क्यूँ मुझे वहीं चेहरा भाया हैं !
कहेने को वो दुनियाँ से लड़कर आया हैं !
पर सच बोलू तो ये माजरा उसी ने फैलाया हैं !
होंठों पे मुस्कान दिल में लिए कटार आया हैं ,
न जाने कितने मासूमों को रौंद कर आया हैं !
प्यार की राह में वो एक काँटा बनकर आया हैं ,
चेहरे पर मुस्कान लिए जाने कितने को मार गिराया हैं !
लाख बुराइयाँ हैं उसमें पर मुझे वहीं दीवाना पसंद आया हैं ,
मेरे साथ आज भी उसी बेवफ़ा का साया हैं !
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