Sunday 20 December 2015

इस रात की चादर में एक बेवफ़ाई का साया हैं , फिर भी न जाने क्यूँ मुझे वहीं चेहरा भाया हैं !

इस रात की चादर में एक बेवफ़ाई का साया हैं ,
फिर भी न जाने क्यूँ मुझे वहीं चेहरा भाया हैं !

कहेने को वो दुनियाँ से लड़कर आया हैं !
पर सच बोलू तो ये माजरा उसी ने फैलाया हैं !

होंठों पे मुस्कान दिल में लिए कटार आया हैं ,
न जाने कितने मासूमों को रौंद कर आया हैं !

प्यार की राह में वो एक काँटा बनकर आया हैं ,
चेहरे पर मुस्कान लिए जाने कितने को मार गिराया हैं !

लाख बुराइयाँ हैं उसमें पर मुझे वहीं दीवाना पसंद आया हैं ,
मेरे साथ आज भी उसी बेवफ़ा का साया हैं !

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